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शनिचरी अमावस्या पर उमड़ी आस्था: उज्जैन के त्रिवेणी घाट पर पहुंचे हजारों श्रद्धालु, फव्वारों से किया स्नान; राजा के रूप में सजे शनिदेव!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
आज शनिचरी अमावस्या का पावन पर्व देशभर में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। उज्जैन की जीवनदायिनी शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर देर रात से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। मध्यरात्रि के बाद से ही हजारों लोग स्नान, तर्पण और पूजन के लिए घाटों पर पहुंचे। परंपरा के अनुसार, स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने शनि देव और नवग्रह की पूजा की।
शिप्रा तट पर उमड़ी भीड़, लेकिन फव्वारों से स्नान की व्यवस्था
शनिचरी अमावस्या पर हर साल की तरह इस बार भी त्रिवेणी घाट पर विशाल भीड़ उमड़ी। बड़ी संख्या में बाहर से आए श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने पहुंचे, लेकिन नदी में पर्याप्त जल प्रवाह न होने की वजह से उन्हें सीधे स्नान का अवसर नहीं मिल सका। प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए घाटों पर फव्वारों से स्नान की व्यवस्था की। लोग इन फव्वारों से जल स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं।
शनि मंदिर में विशेष श्रृंगार, राजा के रूप में सजे शनिदेव
उज्जैन स्थित नवग्रह शनि मंदिर को इस अवसर पर फूलों से भव्य रूप से सजाया गया। मंदिर में शनि महाराज का राजा के स्वरूप में श्रृंगार किया गया। श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक रूप में उन्हें पगड़ी पहनाई गई और आकर्षक अलंकरण किया गया। धार्मिक मान्यता है कि अमावस्या तिथि पर शनि मंदिर के दर्शन करने से शनि दोष और साढ़ेसाती जैसे कष्ट दूर होते हैं। श्रद्धालु स्नान करने के बाद सीधे मंदिर पहुंचकर पूजन-अर्चन कर रहे हैं।
जूते-चप्पल और कपड़ों का दान, फिर होगी नीलामी
इस दिन एक विशेष परंपरा निभाई जाती है। श्रद्धालु शिप्रा स्नान और शनि पूजन के बाद जूते-चप्पल और कपड़े पनौती समझकर वहीं छोड़ जाते हैं। त्रिवेणी घाट पर आज भी हजारों की संख्या में जूते-चप्पल और वस्त्र जमा हो गए हैं। प्रशासन इन्हें एकत्र कर नीलामी प्रक्रिया के जरिए बेचेगा, और प्राप्त धनराशि धार्मिक और जनहित कार्यों में लगाई जाएगी।
अमावस्या और शनि पूजन का महत्व
शनि मंदिर के पंडित जितेंद्र बैरागी ने बताया कि आज की रात का विशेष महत्व है। अमावस्या पर स्नान, दान और तर्पण से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि मनुष्य भी पाप बंधनों से मुक्त होता है। विशेषकर शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या को शनिचरी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन शनि देव की पूजा से अशुभ ग्रहयोग, पितृ दोष, साढ़ेसाती और कालसर्प योग जैसे कष्टों से राहत मिलती है।
इस वर्ष भाद्रपद अमावस्या 22 अगस्त की सुबह 11:55 बजे से शुरू होकर 23 अगस्त की सुबह 11:35 बजे तक रहेगी। चूंकि यह शनिवार के दिन पड़ रही है, इसलिए इसे विशेष रूप से शनिचरी अमावस्या कहा जा रहा है।
स्नान और दान का धार्मिक महत्व
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पवित्र नदियों में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि नदी स्नान संभव न हो तो गंगाजल मिलाकर घर पर स्नान करना भी पुण्यकारी है।
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दान का विशेष महत्व है। शनि दोष को शांत करने के लिए इस दिन काले तिल, काले वस्त्र, काला कंबल, सरसों का तेल, उड़द की दाल, लोहे की वस्तुएं और जूते-चप्पल दान किए जाते हैं।
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श्रद्धालु मानते हैं कि इस दिन किए गए दान-पुण्य से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
शनि अमावस्या का सनातन महत्व
सनातन परंपरा के अनुसार अमावस्या का दिन पितरों को समर्पित माना गया है। इस दिन तर्पण और श्राद्धकर्म से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में समृद्धि आती है। वहीं शनिचरी अमावस्या पर विशेष व्रत और शनि पूजन से मनोवांछित फल प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यता है कि शनि देव की कृपा से दुख, दरिद्रता, रोग और शत्रु बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इसलिए आज देशभर में लाखों श्रद्धालु आस्था और विश्वास के साथ यह पर्व मना रहे हैं।